Vastu
वास्तु शास्त्र हिन्दी सांस्कृतिक और वास्तुकला की प्राचीन विद्याओं में से एक है, जो भवन निर्माण और उसके अंगों के स्थान का अध्ययन करती है। इसे धर्मशास्त्र का एक हिस्सा माना जाता है, जो व्यक्ति को अपने आस-पास के पर्यावरण को सुखद और समृद्धि से भरपूर बनाने के लिए मार्गदर्शन करता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, एक भवन का निर्माण ऐसे होना चाहिए जिससे सभी प्रकार की ऊर्जा अनुकूल रूप से प्रवाहित हो सके। इसमें नक्षत्र, दिशा, तारा-मंत्र, और विभिन्न योजनाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तुशास्त्र में यह माना जाता है कि भवन की उच्च ऊचाई, उचित दिशा, और सही रूप से स्थानित किए गए कमरों से वातावरण में सुधार होता है और वहां रहने वाले लोगों को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, निर्माण में उचित मुहूर्त का चयन करना भी महत्वपूर्ण है। विभिन्न घड़ियालों के अनुसार निर्माण कार्य की शुरुआत करने के लिए उचित समय चयन किया जाता है, जिससे निर्माण कार्य में सफलता और सुख-शांति हो।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की प्राथमिक दरवाजा पश्चिम दिशा में होना चाहिए, क्योंकि इससे सभी प्रकार की ऊर्जा आसानी से प्रवाहित हो सकती है। विभिन्न कमरों का उचित स्थान, उच्चता, और आयाम भी वास्तु शास्त्र में महत्वपूर्ण हैं।
वास्तु शास्त्र का अनुसरण करके, व्यक्ति अपने घर और कार्यस्थल को सुखद और समृद्धि से भरपूर बना सकता है। इसमें उचित दिशा, स्थान, और ऊचाई का ध्यान रखने से व्यक्ति अपने जीवन को सकारात्मकता की ओर बढ़ा सकता है।